Wednesday, 30 December 2015
Monday, 28 December 2015
Hindi Shayari
अपनी सहेलियों
को हमारे बारे में बार बार बतलाती है ।
हमारे शरारतों पे गुस्सा आता है तुम्हे?
हमें मालूम है कि ये गुस्ताखियाँ तुम्हे भी गुदगुदाती है ।
खुद न मिलना हो तो अपनी सहेली से ही मिलवा दो;
न जाने कब से वो हमारे अरमान अपने दिल में जलाती है ।
- सौरभ राय (Saurabh Roy)
- सौरभ राय (Saurabh Roy)
Wednesday, 23 December 2015
Shayari On Life
बदनाम हैं वैसे तो शहर में दरियादिली के लिए;
भिङना कभी; जान जानोगे की हममें ज़ज़बात नही है ।
दिली तमन्ना है जो तुम्हारी, थूकते
तक नहीं उसपर हम ;
और आप पूछते
हैं कि क्यों मलते हमारे ख़यालात
नही है?
दोस्ती तो फ़िर भी बड़ी चीज़ है मेरे दोस्त;
अरे तुम्हारी तो हमसे दुश्मनी की भी औकात नही है ।
- सौरभ राय (Saurabh Roy)
Sunday, 20 December 2015
Mirza Ghalib Shayari
Hatho ki lakeer pe mat ja e-ghaleeb,
Naseeb unke bhi hote hain jinke haath nhi hote
हाथो की लकीरों पे मत जा ए-गालिब,
नसीब उनके भी होते है जिनके हाथ नही होते |
Naseeb unke bhi hote hain jinke haath nhi hote
हाथो की लकीरों पे मत जा ए-गालिब,
नसीब उनके भी होते है जिनके हाथ नही होते |
Girte h sheh-sawaar hi maidan-e-jung mein,
Wo tifl kya girenge jo ghutno ke bal chalte hain
गिरते हैं शह सवार ही मैदान-ए-जंग में,
वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनो के बल चलते है
Qasid ke aate aate khat ek aur likh rakhoon:
Main jaanta hoon jo wo likhenge jawab me.
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में|
Kabb se hoon kya bataaon, jahaan-e-kharaab mein
Shab-e-hijr ko bhi rakhoon garr hisaab me.
कब से हूँ क्या बताऊँ, जहान-ए-खराब में
शब-ए-हिज्र को भी रखूं गर हिसाब में |
[jahaan-e-kharab = world of problems, shab = night + hijr = separation --> nights of separation]
Ragon mein daurte firne ke hum nahin qayal
Jabb aankh hi se na tapka toh lahoo qya hai.
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल:
जब आँख से ही न टपका तो फिर लहू क्या है|
Wo aaye hamare Ghar khuda ki qudrati hai
Kabhi hum unko kabhi apne Ghar ko dekhte hain
वो आये हमारे घर खुदा कि कुदरती है;
कभी हमको उनको कभी अपने घर को देखते हैं ।
Zindagi uski jiski maut pe zamana afsos kre Ghalib,
Yun to har shaks aata h is duniya me marne ko
ज़िन्दगी उसकी जिसकी मौत पे ज़मना अफ़सोस करे गालिब,
यूं तो हर शक्स आता है इस दुनिय में मरने को ।
यूं तो हर शक्स आता है इस दुनिय में मरने को ।
Ye na thee hamaari qismat ke
wisaal-e-yaar hota,
Agar aur jeete rehte yunhee
intezaar hota.
ये न थी हमारी क़िस्मत कि, विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रेहते यूहीं इन्तज़ार होता.
ये न थी हमारी क़िस्मत कि, विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रेहते यूहीं इन्तज़ार होता.
Chale jaenge, tujhe tere haal
pe chhod kar,
Kadar kya hoti hai, ye tujhe waqt sikha dega.
चले जाएगें, तुझे तेरे हाल पे छोङ कर,
क़दर क्या होती है, ये तुझे वक़्त सिखा देगा |
Kadar kya hoti hai, ye tujhe waqt sikha dega.
चले जाएगें, तुझे तेरे हाल पे छोङ कर,
क़दर क्या होती है, ये तुझे वक़्त सिखा देगा |
Wednesday, 16 December 2015
Zahid Sharab Peene De
ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर ,
या वो जगह बता जहाँ ख़ुदा नहीं |
Zahid sharaab peene de masjhid me baith karr;
Ya wo jagah bata de jahan khuda nahin.
(Mirza Ghalib)
मस्जिद ख़ुदा का घर है, पीने की जगह नहीं ,
काफिर के दिल में जा वहाँ ख़ुदा नहीं |
Masjhid khuda ka ghar hai, peene ki jagah nahin.
Kafir ke dil me jaa wahan khuda nahin.
(Allama Iqbal)
काफिर के दिल से आया हूँ मैं ये देख कर,
खुदा मौजूद है वहाँ पर उसे पता नहीं |
Kafir ke dil se ho aaya hoon main ye dekh karr;
Khuda maujood hai wahaan, parr usse pata nahin.
(Ahmad Faraz)
खुदा मौजूद है पूरी दुनिया में, कहीं भी जगह नहीं
तू जन्नत में जा वहाँ पीना मना नहीं.
Khuda maujood hai poori duniya mein, kahin bhi jagah nahi;
Tu jannat me jaa, wahan peena mana nahin.
(Wasi)
पीता हूँ ग़म-ए-दुनिया भुलाने के लिए, और कुछ नही,
जन्नत में कहाँ ग़म है? वहाँ पीने में मजा नहीं |
Peeta hoon gham-e-duniya bhulane ke lie, aur kuch nahi;
Jannat me kahaan gham hai? Wahaan peene me maza nahin.
(Saqi)
पीता हूँ ग़म-ए-दुनिया भुलाने के लिए, और कुछ नही,
जन्नत में कहाँ ग़म है? वहाँ पीने में मजा नहीं |
Peeta hoon gham-e-duniya bhulane ke lie, aur kuch nahi;
Jannat me kahaan gham hai? Wahaan peene me maza nahin.
(Saqi)
Sunday, 13 December 2015
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