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Wednesday, 6 April 2016

Aag Jalni Chahiye - Dushyant Kumar Poem






हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

-
दुष्यन्त कुमार


Ho gayi hai peer parvat si pighalni chahiye,
Iss himalay se koi ganga nikalni chahiye.

Aaj yah deewar pardon ki tarah hilni chahiye,
Shart lekin thi ki ye buniyad hilni chahiye.

Harr sadak parr, harr gali mein, harr nagar, harr gaaon mein;
Haath leharte hue, harr laash chalni chahiye.

Sirf hungama karna mera maksadd nahin;
Saari kosish hai ki ye soorat badalni chahiye.

Mere seene mein nhi toh tere seene me hi sahi,
Ho kaheen bhi aag, lekin aag jalni chahiye.

- Dushyant Kumar 

Sunday, 3 April 2016

Shayari On Life




दर्द जो था दिल में,
उसे कुछ इस तरह साफ़ कर दिया;
किसी से माफी माँग ली,
किसी को माफ कर दिया

- सौरभ राय (Saurabh Roy)

Sunday, 27 March 2016

Shayari Urdu




माना कि नूर--रुख्सार से रोशन है तू,
शक्ल--सूरत से परमैं भी तो कुछ कम नही 
नफ़रत से ही सही पर देखती तो है मुझको तू,
अब तो तेरी रुसवाई में भी वो दम नही 
दिल  तोङेंगे ये कह के फ़ेर लेती है तू निगाहें,
क्या है फ़ितरत मे तेरी गर ये सितम नही 
तेरी नाज़ो को इबादत समझते रहे हम,
अरे कल देखा था गैर के साथ अब कोइ भरम नही 
क्यों करे तकिये गीले याद में तेरे,
जब कि तेरे खयालातों मे ही हम नही 
छोड़ कर चली जा मुझे तू बेशक,
थाम ले गैर का हाथ 
लाखों हसिनाए हैं राहों मे,
अब तो तेरे जाने का भी ग़म नही 

- सौरभ राय (Saurabh Roy)

Sunday, 6 March 2016

Hindi Shayari





सीख रहा हूं अब मैं भी इंसानों को पढने का हुनर,
सुना है चेहरे पे किताबों से ज्यादा लिखा होता है ।।

Wednesday, 3 February 2016

Shayari on Life





बुलंदी की उडान पर हो तो , 
जरा सब्र रखो। 
परिंदे बताते हैं कि , 
आसमान में ठिकाने नही होते ।। 

Sunday, 24 January 2016

Inspirational Shayri







क्या हुआ अगर अभी थके नज़र  रहे हैं?
मैदान--जंग में खुद को उतारेंगे फिर कभी|
गफलत में मत रहना की ठण्डे पर गए हैं हम;
अपने लहू की धार को उबालेंगे फिर कभी|
दो कदम आगे क्या निकल गए हमसे नज़र मिलाने लगे?
ज़िंदगी के हर मोड़ पर तुमको पछारेंगे फिर कभी|
 मेरे बदन के चन्द खरोंचों पे इतरा लो जितना इतराना है;

लहूलुहान तुम्हे कर के हुंकारेंगे फिर कभी|

- सौरभ राय (Saurabh Roy)

Wednesday, 20 January 2016

Shayri





तेरे ख़्वाबों को दिल मे सजया बहुत है
दिल के पास ही सही, पर इन दूरियों ने रुलया बहुत है
तमन्ना तो है कि हर शाम तेरे साथ गुज़ारे
क्या करें मगर ?
तेरे शहर का किराया बहुत है

- सौरभ राय (Saurabh Roy)

Sunday, 17 January 2016

Shayari





जब जब उनकी यादों ने सतया,
तब तब उन्हे याद किया 
जब जब तन्हाई ने हमें रुलया​,
तब तब उन्हे याद किया 
लिपटे रहती हैं यादें उनकी फ़ुर्सत में हमसे 
हमें अब तो ये भी खबर नही है;

कि कब कब उन्हे याद किया 

- सौरभ राय (Saurabh Roy)

Wednesday, 13 January 2016

Shayari on Life



किसी के जी-हुजूरी हम अपना मुकाम समझ बैठे हैं,
मुनाफे के एक टुकरे कोएहसान समझ बैठे हैं 
अब क्या बात करें अपनी शख्सियत और हैसियत की ?
अब तो गले के पट्टे को पहचान समझ बैठे हैं 


- सौरभ राय (Saurabh Roy)

Sunday, 10 January 2016

Hindi Shayari





डूब कर काम में कामिनी को भूल जाऐं जब;
आख़िर क्यों ख़फा  हो हमसे वो फिर ?
फ़ुर्सत के पलों में भी फ़ुर्सत  निकाल पायें जब;
आख़िर क्यों ख़फा  हो हमसे वो फिर ?
रूठे रहे हमसे वो और हम उनको माना  पाए जब;
आख़िर क्यों ख़फा  हो हमसे वो फिर ?
उन्हें तो हजारों बार समझा दिया है अब तक हमने,
मगर खुद को ही नही समझा पाते हैं हम अब;
आख़िर क्यों ख़फा  हो हमसे वो फिर ?

- सौरभ राय (Saurabh Roy)