क्या हुआ अगर अभी थके नज़र आ रहे हैं?
मैदान-ए-जंग में खुद को उतारेंगे फिर कभी|
गफलत में मत रहना की ठण्डे पर गए हैं हम;
अपने लहू की धार को उबालेंगे फिर कभी|
दो कदम आगे क्या निकल गए हमसे नज़र मिलाने लगे?
ज़िंदगी के हर मोड़ पर तुमको पछारेंगे फिर कभी|
मेरे बदन के चन्द खरोंचों पे इतरा लो जितना इतराना है;
लहूलुहान तुम्हे कर के हुंकारेंगे फिर कभी|
- सौरभ राय (Saurabh Roy)
- सौरभ राय (Saurabh Roy)
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