शक्ल-ए-सूरत से पर; मैं भी तो कुछ कम नही ।
नफ़रत से ही सही पर देखती तो है मुझको तू,
अब तो तेरी रुसवाई में भी वो दम नही ।
दिल न तोङेंगे ये कह के फ़ेर लेती है तू निगाहें,
क्या है फ़ितरत मे तेरी गर ये सितम नही ।
तेरी नाज़ो को इबादत समझते रहे हम,
अरे कल देखा था गैर के साथ अब कोइ भरम नही ।
क्यों करे तकिये गीले याद में तेरे,
जब कि तेरे खयालातों मे ही हम नही ।
छोड़ कर चली जा मुझे तू बेशक,
थाम ले गैर का हाथ ।
लाखों हसिनाए हैं राहों मे,
अब तो तेरे जाने का भी ग़म नही ।
- सौरभ राय (Saurabh Roy)
- सौरभ राय (Saurabh Roy)
No comments:
Post a Comment